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September 10, 2025 3:54 pm

अब रियल एस्टेट में ‘सफाई अभियान’: सीजी-रेरा ने दी 90% तक की छूट, सितंबर तक मिलेगी बड़ी राहत!

अब रियल एस्टेट में ‘सफाई अभियान’: सीजी-रेरा ने दी 90% तक की छूट, सितंबर तक मिलेगी बड़ी राहत!

Raipur/छत्तीसगढ़ के रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता की नई गाथा लिखी जा रही है। आम खरीदारों का विश्वास लौटाने और प्रोजेक्ट्स में जवाबदेही तय करने के लिए छत्तीसगढ़ रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (सीजी-रेरा) ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। प्राधिकरण ने वॉलन्टरी कॉम्प्लायंस स्कीम लागू कर दी है, जिसके तहत रियल एस्टेट प्रमोटरों को 70% से लेकर 90% तक की विलंब शुल्क में छूट मिलने का सुनहरा अवसर मिलेगा।

रियल एस्टेट में बदलाव का बिगुल!

अब तक जिन प्रमोटरों पर लंबित रिपोर्ट जमा न करने के कारण भारी जुर्माने का खतरा मंडरा रहा था, उनके लिए यह स्कीम संजीवनी बनकर आई है। सीजी-रेरा ने यह व्यवस्था सितंबर 2025 तक के लिए लागू की है। इस अवधि में यदि प्रमोटर लंबित तिमाही प्रगति रिपोर्ट (Quarterly Progress Report) और वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट (Annual Audit Report) जमा करते हैं तो उन पर लगाए जाने वाले विलंब शुल्क में बड़ी छूट दी जाएगी।

• साधारण मामलों में छूट – 70% तक,

• वर्क कंप्लीशन सर्टिफिकेट वाले प्रोजेक्ट्स पर छूट – 90% तक,

यानी पहले जो लाखों का बोझ प्रमोटरों पर पड़ रहा था, वह अब सिर्फ कुछ हजार में निपटाया जा सकेगा।

खरीदारों का विश्वास, सरकार की मंशा!

छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ वर्षों में हाउसिंग सेक्टर को लेकर कई सवाल खड़े हुए हैं। अधूरे प्रोजेक्ट, निवेशकों का फंसा पैसा और ग्राहकों को समय पर मकान न मिलने जैसी समस्याएं लगातार चर्चा में रहीं। इसी पृष्ठभूमि में सीजी-रेरा का यह कदम ग्राहकों का विश्वास लौटाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।

सीजी-रेरा ने साफ कर दिया है कि इस स्कीम का मुख्य उद्देश्य “दंडात्मक कार्रवाई करना नहीं, बल्कि अनुपालन संस्कृति को मजबूत करना है।”

कौन से प्रोजेक्ट्स को मिलेगी राहत?

यह योजना उन सभी प्रोजेक्ट्स पर लागू होगी, जो 31 मार्च 2024 तक पंजीकृत किए गए हैं। ऐसे प्रोजेक्ट्स के प्रमोटरों को अब मौका मिला है कि वे अपनी पुरानी लंबित रिपोर्ट्स जमा कर कानूनी दायरे में आ जाएं।

• तिमाही प्रगति रिपोर्ट (QPRs),

• वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट्स (AARs),

इन दोनों को एक साथ जमा कर देने पर प्रमोटर जुर्माने की मार से बच जाएंगे।

रियल एस्टेट सेक्टर में ‘पारदर्शिता की क्रांति’!

विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह स्कीम केवल प्रमोटरों के लिए राहत नहीं है, बल्कि आम खरीदारों के लिए भी बड़ी खुशखबरी है।

• जब सभी रिपोर्ट्स समय पर आएंगी, तो खरीदारों को पता चलेगा कि उनके प्रोजेक्ट की वास्तविक स्थिति क्या है।

• किसी प्रोजेक्ट में कितना काम बाकी है और पैसा कहां खर्च हुआ, इसकी स्पष्ट जानकारी उपलब्ध होगी।

• फर्जीवाड़े और भ्रम फैलाने वाली गतिविधियों पर लगाम लगेगी।

डिजिटल माध्यम से आसान अनुपालन!

सीजी-रेरा ने प्रमोटरों को यह भी आश्वासन दिया है कि रिपोर्ट जमा करने की प्रक्रिया को पूरी तरह डिजिटल और सरल बनाया गया है। प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट https://rera.cgstate.gov.in/
पर विस्तृत गाइडलाइन और परिपत्र क्रमांक 115, 116 और 119 अपलोड किए गए हैं।

उद्योग जगत की प्रतिक्रिया!

रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर और अन्य बड़े शहरों के रियल एस्टेट डेवलपर्स ने इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि सीजी-रेरा ने व्यावहारिक सोच दिखाई है।

एक प्रमोटर ने कहा – “पहले इतनी भारी पेनाल्टी देखकर लगता था कि रिपोर्ट जमा करना ही मुश्किल है, लेकिन अब यह स्कीम हमें कानूनी दायरे में आने के लिए प्रोत्साहित करेगी।”

वहीं उपभोक्ता संगठनों ने भी इसे सकारात्मक कदम बताया है। उनका मानना है कि पारदर्शिता बढ़ने से खरीदारों को भरोसा मिलेगा और विवादों की संख्या घटेगी।

सितंबर तक है मौका, वरना फिर जुर्माना!

हालांकि सीजी-रेरा ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि सितंबर 2025 के बाद ऐसी कोई राहत नहीं दी जाएगी। जो प्रमोटर इस अवधि में योजना का लाभ नहीं उठाएंगे, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

यानी यह योजना ‘अवसर’ भी है और ‘चेतावनी’ भी।

राज्य सरकार का संकल्प!

राज्य सरकार का लक्ष्य है कि आने वाले वर्षों में छत्तीसगढ़ का रियल एस्टेट सेक्टर देश में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए उदाहरण बने। यही कारण है कि यह स्कीम सिर्फ आर्थिक राहत नहीं, बल्कि “विश्वास की बहाली और सिस्टम की सफाई” का अभियान कही जा रही है।

सीजी-रेरा की वॉलन्टरी कॉम्प्लायंस स्कीम छत्तीसगढ़ के रियल एस्टेट क्षेत्र में नई सुबह का ऐलान है। यह केवल जुर्माने में छूट की बात नहीं है, बल्कि यह खरीदारों और प्रमोटरों के बीच विश्वास की खाई को पाटने का प्रयास है। अब देखना होगा कि कितने प्रमोटर इस अवसर का लाभ उठाते हैं और कितने अपनी पुरानी आदतों पर कायम रहते हैं।

एक ओर है पारदर्शिता का रास्ता, दूसरी ओर दंड की तलवार – अब फैसला प्रमोटरों के हाथों में है।

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